संस्कृत एवं संस्कृति ही भारत की प्रतिष्ठा के मुख्य हेतु हैं- ‘भारतस्य प्रतिष्ठे द्वे संस्कृतं संस्कृतिस्तथा’। संस्कृत प्राचीन विद्याओं का अजस्र स्रोत है। संस्कृत ही वेद, व्याकरण, दर्शन, आयुर्वेद, ज्योतिष, वास्तु आदि विद्याओं का केन्द्र है। संस्कृत में अनेक विषय ऐसे हैं जिनके सम्बन्ध में शोधच्छात्र, ज्ञानपिपासु अथवा अन्य जिज्ञासु अन्वेषण करते रहते हैं। मैं विभिन्न विषयों पर अन्वेषण करके समीक्षापूर्वक शोधलेख प्रस्तुत कर रहा हूँ, जिसके अध्ययन से आपके ज्ञान में निश्चित वृद्धि होगी। धन्यवाद…

कोरोना-व्याधि-निवारण में योग की भूमिका :-: Role of Yoga in Corona Disease Prevention

   


विश्व का आदिग्रन्थ वेद कहता है कि यदीयं सर्वा भगो वित्तेन पूर्णा किमहं तेन कुर्यां येनाहं नामृता स्याम्[1] अर्थात् यदि धन से भरी यह पृथ्वी भी मुझे मिल जाये लेकिन इसका मैं क्या करूं जो मुझे अमर नहीं बना सके अर्थात् मुझे जीवन दे सके। इस लोक में कुछ भी जीवन से बहुमूल्य नहीं। पंचभूतों से बना यह भौतिक शरीर जो अनेक अवयवों से युक्त है जो आत्मा से युक्त होकर ही किसी कर्म में प्रवृत्त होता है; आत्मा का विच्छेद होते ही इस शरीर का कोई मूल्य नहीं होता। इसीलिए इस शरीर को धारण करने के लिए अनेक प्रकार के दुःखों को सहना पड़ता है फिर भी इस शरीर को धारण करने के लिए जीव लालायित रहता है- पुनरपि जननं पुनरपि मरणं पुनरपि जननीजठरे शयनम्[2]

         आज के वैज्ञानिक युग में नित-प्रतिदिन अनेक अन्वेषण होते हैं जिसमें अनेक सकारात्मक परिणाम प्राप्त होते हैं वहीं कुछ प्रविधियों में गलती होने से घातक परिणाम प्राप्त होते हैं। इसी का उदाहरण आज का कोरोना वायरस COVID-19 है। यह वायरस कैसे उत्पन्न हुआ इसका सही पता नहीं लगा किन्तु कुछ अनुसन्धानकर्ता इसे विज्ञान का ही दुष्परिणाम बताते हैं। आज सम्पूर्ण विश्व इससे त्रस्त है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार आज विश्व में लगभग 168032095 (16 करोड़ 80 लाख 32 हजार 95) लोग COVID-19 से संक्रमित हो चुके हैं[3] तथा इस रोग से 3488576 (34 लाख 88 हजार 5 सौ 76) लोग मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं।[4] इस रोग का संक्रमण सर्वप्रथम चीन के वुहान नामक शहर में दिसम्बर, 2019 में देखने को मिला। यह वायरस मुख्य रूप से रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity) को प्रभावित करता है तथा जिसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर है उसको यह वायरस अधिक प्रभावित करता है।

         आज सम्पूर्ण विश्व इस वायरस की दवा बनाने में संलग्न है। कुछ देशों में वैक्सिन भी लगाया जा रहा है। वहीं यह वायरस अपने स्वरूप को दिन-प्रतिदिन बदलने वाला है इसीलिए इस वायरस की दवा एवं वैक्सिन बनाने में वैज्ञानिकों एवं डॉक्टरों को अत्यधिक शोध एवं परिश्रम करना पड़ रहा है। शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्[5] अर्थात् यह शरीर ही सभी धर्मों सभी कार्यों का प्रमुख साधन है। आशय यह है कि यदि यह शरीर है तो आप अपनी इच्छा से कुछ भी कर सकते हैं लेकिन शरीर के विना आप कोई भी धर्म अथवा कार्य नहीं कर सकते हैं अतः शरीर की प्रधानता सर्वत्र है। इस विचारधारा का उन्नयन प्राचीन भारत में ही हो गया था। इस शरीर के संरक्षण एवं विकास हेतु अनेक शास्त्र प्रचलित हुए। उन्हीं में आयुर्वेद एवं योगशास्त्र को प्रमुख स्थान प्राप्त है। आयु का ज्ञान कराने वाले शास्त्र को आयुर्वेद कहते हैं- आयुषो वेदः आयुर्वेदः यह आयुर्वेद शास्त्र मनुष्य के चार आयु- हितायु, अहितायु, सुखायु तथा दुःखायु का विश्लेषण करते हुए हिताहित का बोध कराने वाला है-

हिताहितं सुखं दुःखम् आयुस्तस्य हिताहितम्।

मानं तस्य यत्रोक्तमायुर्वेदः उच्यते॥[6]

आयुर्वेद वात-पित्त-कफ के वैषम्य से उत्पन्न होने वाले रोगों का उपचार करता है। वस्तुतः धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष पुरुषार्थ का मूल आरोग्य है- धर्मार्थकाममोक्षाणामारोग्यं मूलमुत्तमम्’[7] क्योंकि शरीर के स्वस्थ रहने पर ही इन चारों पुरुषार्थों को प्राप्त किया जा सकता है। रोग आरोग्य (स्वास्थ्य), अभ्युदय (विकास) तथा जीवन (आयु) को नष्ट करने वाले होते हैं- रोगास्तस्यापहर्तारः श्रेयसो जीवितस्य च’[8] योग शारीरिक के साथ मानसिक विकारों का भी शमन करता है। इस महामारी के काल में योग के द्वारा किस प्रकार से COVID-19 से सुरक्षित रह सकते हैं तथा कदाचित् इसका संक्रमण होने पर भी योग के द्वारा किस प्रकार स्वस्थ हो सकते हैं; इसका वर्णन आगे किया जा रहा है।

         योग केवल मानसिक वृत्तियों को नियन्त्रित करता है अपितु यह आध्यात्मिक, आधिदैविक एवं आधिभौतिक दुःखों को निवृत्त कर परमानन्द की प्राप्ति कराता है। यह योगशास्त्र जो प्राणायाम के द्वारा प्राण का नियन्त्रण करने की सीख देता है यह केवल भावात्मक रूप से स्वास्थ्य का संरक्षण करने वाला नहीं है अपितु यह तो प्रयोग में देखा जा चुका है- ‘The Science of breathing is as old as the world. It is practiced not morely for health’[9]. योग के महत्त्वपूर्ण अष्टांगयोग के प्रथम दो अंग यम एवं नियम चित्त को शुद्ध करते हैं, आसन शरीर को पुष्ट करता है तथा प्राणायाम प्राण को शक्तिशाली बनाता है जिससे आयु बढ़ती है।

         यम का आशय ऐसे कर्मों पर प्रतिबन्ध लगाने से है जो अनावश्यक किये जाते हैं। अनेक जीव-जन्तुओं की हत्या कर उनके मांस का भक्षण करना आज की आधुनिकता है लेकिन शरीर-विशेषज्ञ कहते हैं कि मांस का भक्षण करने से हमारे शरीर के अनेक अंग बेकार हो जाते हैं, यथोचित कार्य नहीं करते हैं क्योंकि हमारा यह शरीर अन्य जन्तुओं की तरह मांस-भक्षण करने योग्य नहीं है फिर भी मांस का भक्षण करते हैं। इससे शरीर पर बहुत ही गलत प्रभाव पड़ता है। यम का चतुर्थ अंग है ब्रह्मचर्य; वीर्य हमारे शरीर को अत्यन्त तेजस्वी, क्रियाशील एवं स्वस्थ बनाने वाला होता है लेकिन आज की युवापीढ़ी मैथुन क्रिया में संलिप्त हो वीर्य का अनवरत क्षरण कर रहे हैं जिससे शरीर की क्षमता दिन-प्रतिदिन कमजोर होती जा रही है। यम का पंचम एवं अन्तिम अंग अपरिग्रह कहता है कि जितने की आवश्यकता है उतना ही संग्रह करना चाहिए। क्योंकि किसी भी खाद्य पदार्थ को ज्यादा दिन रखने उसके प्रोटीन, विटामीन इत्यादि नष्ट हो जाते हैं। इस प्रकार यम के अहिंसा का पालन कर तथा शाकाहार को अपनाकर; ब्रह्मचर्य का अनुपालन करने से वीर्य का संरक्षण कर तथा अपरिग्रह को अपनाते हुए प्रतिदिन ताजे फल-सब्जी इत्यादि का सेवन करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जा सकता है इससे COVID-19 से लड़ने में अत्यन्त सहायता प्राप्त होगी।

         नियम जीवन में नियमबद्ध होकर जीवन यापन करने के लिए प्रेरित करता है। जीवन का नियमित होना अत्यन्त आवश्यक है। मनुष्य के स्वास्थ्य पर सोने एवं जागने का अत्यन्त गम्भीर प्रभाव पड़ता है इसीलिए हमारे प्राचीन विचारकों ने सोने एवं जागने का एक निश्चित समयक्रम बना रखा था। एक स्वस्थ व्यक्ति को कम से कम 05:30 घण्टे नींद लेना आवश्यक है तथा सोने का समय 10:00 बजे से 04:00 के मध्य होना चाहिए। क्योंकि ब्रह्ममुहूर्त में जागने से व्यक्ति में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। आजकल मनुष्य की दिनचर्या में जंकफूड ने विशेष स्थान बना लिया है जो मैदा, मसाला इत्यादि को ज्यादे दिन तक रखकर बनाया जाता है इसी प्रकार रहने, खाने, पीने इत्यादि में सफाई का ध्यान देने से भी स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव पड़ता है इस प्रकार अष्टांग योग के नियम का शौच सिखाता है कि हमें हमेशा स्वच्छ एवं ताजी चीजें खानी चाहिए तथा हमें स्वच्छतापूर्वक रहना चाहिए। आज के दौर में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने COVID-19 से बचाव में स्वच्छता को प्रथम स्थान पर रखा है। अतः जीवन में खाने, पीने एवं रहने से सम्बन्धित स्वच्छता को अपनाकर COVID-19  से बचा जा सकता है।

         भारत में आसन की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है। हमारे ऋषि-मुनि भी प्रायः भिन्न-भिन्न आसनों में अनेक शास्त्रों में देखने को मिलते हैं। महात्मा बुद्ध एवं वर्द्धमान महावीर भी एक विशेष आसन में दिखते हैं। वस्तुतः आसन से शरीर को सुदृढता एवं स्वास्थ्य प्राप्त होता है। महर्षि पतञ्जलि के अनुसार जो स्थिरता प्राप्त कराने वाला एवं सुखदायी है वह आसन है- स्थिरसुखमासनम्[10] घेरण्ड संहिता में कुल ८४ लाख आसनों का उल्लेख मिलता है।[11] भिन्न-भिन्न शास्त्रकारों ने भिन्न-भिन्न आसनों को प्रमुख बताया है, हठप्रदीपिकाकार ने सिद्धासन, पद्मासन, सिंहासन एवं भद्रासन को अत्यन्त श्रेष्ठ बताया है-

सिद्धं पद्मं तथा सिंहं भद्रञ्चेति चतुष्टयम्।

श्रेष्ठं तत्रापि सुखे तिष्ठेत् सिद्धासने सदा॥[12]

इन आसनों में कुछ साधारण एवं प्रमुख आसन ऐसे हैं जो इस COVID-19 के काल में रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में अत्यन्त सहायक हैं जैसे कि- त्रिकोणासन, पादांगुष्ठासन, भुजंगासन[13], उत्तानासन, धनुरासन[14], वज्रासन[15], बालासन, मत्स्यासन[16], मयूरासन[17], चक्रासन, शशांकासन, उत्कटासन[18], पश्चिमोत्तानासन[19], उष्ट्रासन इत्यादि आसन करने में अत्यन्त सरल हैं लेकिन इनसे शरीर को अत्यन्त ऊर्जा मिलती है। ये प्रत्येक आसन शरीर को नियमित बनाये रखने में, शरीर को स्वस्थ रखने में तथा शरीर के प्रत्येक अंग को संचालित करने वाले होते हैं। योग के महत्त्व को एक अर्द्ध श्लोक द्वारा बताया गया है- आसनं विजितं येन जितं तेन जगत्त्रयम्[20] अर्थात् जिसके द्वारा आसन को जीत लिया जाता है उसके द्वारा द्वारा यह तीनों लोक जीत लिया जाता है, इसका आशय यह है कि उसमें अकूत ऊर्जा का प्रवाह होता है जिससे वह सम्पूर्ण लोकों पर विजय प्राप्त कर सकता है। आसन के साथ ही साथ यदि कपालभाति, अनुलोम-विलोम, भस्त्रिका इत्यादि प्रकार के प्राणायाम किये जायें तो शरीर के लिए अत्यन्त लाभदायक सिद्ध होंगे। इस प्रकार इन प्रमुख आसनों का अभ्यास करके COVID-19 से बचा जा सकता है।

         कोरोना के इस महामारी काल में शारीरिक स्वास्थ्य का संरक्षण करना अत्यन्त आवश्यक है साथ ही मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना भी जरूरी है क्योंकि लॉकडाउन की वजह से जहाँ सभी का घर से बाहर निकलना दुर्भर हो गया है वहीं एक घर में रहते हुए भी सब दूर-दूर हो गये हैं इससे मानसिक तनाव होना सम्भव है। मानसिक तनाव एवं दुश्चिन्ता से बचने का अच्छा एवं सरल उपाय है- ध्यान करना। वस्तुतः ध्यान करने का आशय यह नहीं कि आप घर-परिवार से एकदम विरक्त हो जायें; इसका आशय यह है कि मन की शान्ति के लिए कुछ देर तक बाह्य जगत् से सम्बन्ध-विच्छेद किया जाय। अतः घर में रहते हुए कुछ देर तक ध्यान करने का अभ्यास डालें यह शारीरिक एवं मानसिक दोनों प्रकार के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होगा।

इसी प्रकार यदि कोरोना काल में घर में रहते हुए स्वस्थ रहने की बात की जाये तो दैनिक-आहार की अत्यन्त आवश्यकता है। शास्त्र कहते हैं कि- आहारशुद्धौ सत्त्वशुद्धिः सत्त्वशुद्धौ ध्रुवा स्मृतिः अर्थात् आहार के शुद्ध होने पर बुद्धि शुद्ध होती है तथा बुद्धि के शुद्ध होने पर स्मृति अर्थात् ज्ञान सत्य अर्थात् निश्चित होता है। योगशास्त्रों में शुद्ध आहार की अनेक चर्चायें प्राप्त होती हैं जहाँ विभिन्न प्रकार के आहार का वर्णन प्राप्त होता है लेकिन शुद्ध एवं स्वस्थ जीवन के लिए योगी वाला आहार ग्रहण करना चाहिए-

शुद्धं सुमधुरं स्निग्धं गव्यं धातुप्रपोषणम्।

मनोभिलषितं योग्यं योगी भोजनमाचरेत्॥

         योगशास्त्र प्राचीन भारत का प्राचीन विज्ञान है। यह सम्पूर्ण जगत् के विज्ञान को स्वयं में समाहित करता है। आज विज्ञान अनेकों प्रयासों के बाद भी COVID-19  का इलाज नहीं बता पा रहा लेकिन योग आसन-प्राणायामादि के द्वारा रोग प्रतिरोधक क्षमता को उत्कृष्ट कर COVID-19 से लड़ने में सहायक सिद्ध हो रहा। मत्स्यासन, वज्रासन, धनुरासन, कपालभाति आदि का निरन्तर अभ्यास करने से तथा योगयुक्त जीवन यापन करने से कोरोना से ही नहीं अपितु अन्य रोगों से भी बचा जा सकता है। योग से रोगों का उपचार आज से ही नहीं हो रहा अपितु यह परम्परा तो अत्यन्त प्राचीन है। इसीलिए हे जगत् के अमृत पुत्रों! इस आदिज्ञान, अमर ज्ञान को सुनो- शृण्वन्तु विश्वे अमृतस्य पुत्राः[21]



[1] बृहदारण्यकोपनिषद्, २.२

[2] भजगोविन्दम्, २१

[5] कुमारसम्भव, .३३

[6] चरक संहिता, सूत्रस्थान, .४१

[7] वहीं, .१५

[8] वहीं, .१५

[9] Virchand R. Gandhi, The Yoga philosophy, The trustees Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund, Bombay, 1912

[10] पातञ्जल योगसूत्र, .४६

[11]  आसनानि समस्तानि यावन्तो जीवजन्तवः।

        चतुरशीति लक्षाणि शिवेनाभिहितानि च॥ घेरण्ड संहिता, .

[12] हठप्रदीपिका, .३६

[13] अङ्गुष्ठं नाभिपर्यन्तमधोभूमौ विनिन्यसेत्।

       करतलाभ्यां धरां धृत्वा ऊर्ध्वशीर्षं फणीव हि॥

       देहाग्निर्वर्धते नित्यं सर्वरोगविनाशनम्।

       जागतिं भुजगी देवी भुजगासनसाधनात्॥ घेरण्ड संहिता, .३६

[14] पादाङ्गुष्ठौ तु पाणिभ्यां गृहीत्वा श्रवणावधिः।

       धनुराकर्षकाकृष्टं धनुरासनमीरितम्॥ त्रिशिखिब्राह्मणोपनिषद्, ४३

[15] जङ्घाभ्यां वज्रवत्कृत्वा गुदपार्श्वे पदावुभौ।

       वज्रासनं भवेदेतद्योगिनां सिद्धिदायकम्॥ घेरण्ड संहिता, .११

[16] मुक्तपद्मासनं कृत्वा उत्तानशयनं चरेत्।

       कूर्पराभ्यां शिरोवेष्टयमत्स्यासनं तु रोगहा॥ घेरण्ड संहिता, .१९

[17] धरामवष्टभ्य करद्वयेन तत्कूर्परस्थापितनाभिपार्श्वः।

       उच्चासनो दन्डवदुत्थितः स्यान्मायूरमेतत्प्रवदन्ति पीठम्॥ हठयोगप्रदीपिका, .३२

[18] अङ्गुष्ठाभ्यावष्टभ्य धरा गुल्फे खे गतौ।

       तत्रोपरि गुदं न्यस्य विज्ञेयमुत्कटासनम्॥ घेरण्ड संहिता, .२३

[19] प्रसार्य पादौ भुवि दण्डरूपौ पादाग्रद्वितयं गृहीत्वा।

       जानूपरि न्यस्तललाटदेशौ वसेदिदं पश्चिमोत्तानमाहुः॥ हठयोगप्रदीपिका, .३०

[20] त्रिशिखिब्राह्मणोपनिषद्, ५२

[21] श्वेताश्वतरोपनिषद्, 2.5

कृपया कमेण्ट, शेयर एवं फॉलो जरूर करें... 

Please Comment, Share and Follow…

Post a Comment

और नया पुराने